लेखक - उमेश बुडाना
*क्यूँ जलती मिलती सड़कें हैं?*
क्यूँ जलती मिलती सड़कें हैं?
किस बात पे शोले भड़कें हैं?
हाहाकार है क्यूँ दिल्ली में ?
नाराज से लगते लड़कें हैं।
क्यूँ जलती मिलती सड़कें हैं?
जो तेरा है वो मेरा है,
हर कौम का यहीं बसेरा है।
है शक तो चिर कलेजों को,
देख हिन्द की खातिर धड़के हैं।
क्यूँ जलती मिलती सड़कें हैं?
मिले दुनिया क्यूँ रोती व बिलख?
लड़े नित के क्यूँ टोपी व तिलक?
हम हो गए कुत्ते-बिल्लियों से,
नैनों में रज से रड़के हैं।
क्यूँ जलती मिलती सड़कें हैं?
हम सदियाँ साथ गुजारे थे,
पुरखे भी एक हमारे थे।
अटल-अडिग हम वट से थे,
अब दीमक लिपटी जड़ के हैं।
क्यूँ जलती मिलती सड़कें हैं?
क्या होगा बस ये फिकर करूँ?
किस मुँह से नेह का जिकर करूँ?
जाजम थी एक,दो टूक हुए,
तुम उधर रहो, ये इधर के हैं।
क्यूँ जलती मिलती सड़कें हैं?