भीम प्रज्ञा संपादकीय- एडवोकेट हरेश पंवार
'आ रै राडिया राड करां ठाला बैठाया कै करां।' कोरोना वायरस के संक्रमण त्रासदी के चलते संपूर्ण भारत में लोक डाउन चल रहा है। यदि कोई लोक डाउन के चलते घर में बैठेकर निठल्लेपन का दुरुपयोग करते हुए अफवाहे फैलाते पाया तो मुकदमे खा बैठोगे। इन सब बातों से आपको क्या फायदा ? चलो कुछ रचनात्मक करते। कुछ सृजनात्मक भी और कुछ नहीं तो कम से कम अफवाहे युक्त पोस्ट शेयर कर समाज में मानसिक प्रदूषण तो न फैलाएं। यहां मानसिक प्रदूषण का तात्पर्य है। ऐसे कोई विचार या पोस्ट साझा ना करें। जिससे कोई व्यक्तिगत समूह आहत ना हो। क्योंकि आपके इस निठल्लेपन की उद्दंडता से कहीं सामाजिक सौहार्द वातावरण खराब ना जाए। कोविड-19 संग्राम की इस त्रासदी से तो हमारे योद्धा लड़ लेंगे। निठल्ले बैठे बेवजह ही बहस कर रहे हैं। लेकिन इस संकट की घड़ी में देश की अर्थव्यवस्था में भारी गिरावट आने की संभावनाओं और पहली बार आर्थिक आपाकाल जैसी बाध्यता से सामाजिक व्यवस्था खंडित ना हो जाए । सोशल मीडिया पर प्रशासन की तीखी नजरों के बीच भी कुछ अफवाहें तो मोबाइल पर तो कहीं वार्तालाप के दौरान झूठ के बवंडर फैलाने के बूम चल रहे हैं। इन सब बातों से बचने की जरूरत है। यदि मैं बोलूंगा तो फिर कहोगे कि बोलता है। जमात में छुपे लोगों की स्कैनिंग किए जाने के बाद कोरोना वायरस के पॉजिटिव मामलों में इजाफा हुआ है। धर्म के ठेकेदारों की दुकानें बंद कर उनके मुंह में ताला जड़ने के बावजूद भी कुछ धर्मावलंबियों ने बेवजह अपनी टीआरपी बटोरने की मंसा से बेहुदी बयानबाजी कर रहे हैं।
वर्तमान में कुछ ऐसा भी देख रहा है। हिंदी में लोकोक्ति है निठल्ला दिमाग शैतान का घर होता है। लोक डाउन के चलते लोग घरों में बैठे हैं। कुछ लोग निठल्ले बैठे अपराध की उक्तियां घडते रहते हैं। जहां तक देखने के लिए आ रहा है। पुलिस प्रशासन की सतर्कताओं के चलते कभी-कभार खुसर पुसर अफवाहों का बूम चलता रहता है। कुछ नौजवान देशभक्ति दिखाने के लिए तो कुछ अपने आप को ओर स्मार्ट साबित करने के लिए। नई-नई उक्तियां ढूंढ रहे हैं। जैसे अपने अपने गांव की सीमा पर झाड़ियां डालकर रास्ता ब्लॉक करना। बैरिकेट्स लगाना तार बाड़ करना। यह तमाम तरीके के उपाय से बेहतर है कि खुद अपने आप घर पर रहे। इससे बेहतर कोई कार्य नहीं हो सकता । कुछ युवक अनाधिकृत चेष्टा के चलते अपकृत्य करते हुए दिखाई दे रहे हैं। गांव में आपसी तनाव बढ़ सकता है। मीडिया के साथियों से आग्रह है। ऐसी खबरों को छापने से बचें। अब तक गांव में पहरा देने के लिए ग्रामीणों की सहयोग की कोई आवश्यकता नहीं पड़ी। तो अचानक इस तरीके का बूम फैलाई जाने के पीछे छुपे रहस्य को पुलिस को खोजना चाहिए। कहीं यह ना हो कि सामाजिक व्यवस्था के ताने-बाने के रिश्तो में कड़वाहट पैदा न कर दें। धर्म विशेष के लोगों के नाम पर शक के आधार पर फैलाई जा रही अफवाह घातक हो सकती है। कोरोनावायरस की इस त्रासदी में संघर्ष मानव सभ्यता को बचाने का है। आज संघर्ष प्रत्येक व्यक्ति को भूख से बचाने का है ।और मूर्ख लोग इससे धार्मिक मुद्दा बनाने का प्रयास कर रहे हैं। जाते जाते एक बात और स्पष्ट कर दूं कोरोना संक्रमण के सामने जाति धर्म संप्रदाय की सारी दुकानें बंद हैं। यदि कोविड-19 की त्रासदी में कोई धार्मिक उन्मादता फैला रहा है तो दुनिया का उससे बड़ा कोई महामूर्ख नहीं है। मूर्खों की जमात पर टिप्पणी करना व्यर्थ की बातें हैं अब यदि बचाना है तो मानव सभ्यता को बचाना है। राष्ट्र की एकता को ताकत देनी है। आपसी भाईचारा और सौहार्द वातावरण को बनाए रखना है। सड़कों पर पहरेदारी से ही देश की सेवा नहीं हो सकती है व्यक्ति अपने आप को ठीक कर ले और अपने घरों में राष्ट्र के आदेशों की पालना कर ले इससे बड़ी कोई राष्ट्र भक्ति नहीं हो सकती। बाकी अफवाह फैलने व फैलाने से रोके तमाम भ्रांतियों से दूर रहे स्वच्छ रहे पॉजिटिव सोचे और यदि घर में बैठे हैं तो सकारात्मक एवं सृजनात्मक कार्य करते रहें। कुछ लोग कह रहे थे कि उन्हें तो घर के कार्यों के लिए फुर्सत नहीं है कम से कम इस समय वह घर की छोटी मोटी टूट-फूट सुधार लें। साफ सफाई करें। गली मोहल्ले की नाली खाली को ठीक कर दे। बेड पर पड़े पड़े सोशल मीडिया में गोचाबाजी करने से तो यह ठीक है। आज इतना ही बाकी कल--