भीम प्रज्ञा संपादकीय@एडवोकेट हरेश पंवार
'गरीब नाम की लूट है, लूट सके तो लूट। अंत समय पछताएगा। जब लॉक डाउन जाएगा टूट।' क्या सच में गरीबी के नाम पर लूटपाट मची हुई है ? या फिर लॉक डाउन के चलते गरीबों के साथ हमदर्दी दिखाई जा रही है। सच क्या है ? यह तो कौन जाने हैं ? परंतु बहुत से लोग मानवीय संवेदना जताते हुए उसकी मदद जरूर कर रहे है ? जो भी है यार ! आज पंच पटेलों के बीच में बैठकर न्याय की बात करता कौन है ? हर कोई मुंह खोलते कतराता है। कोई पंच परमेश्वर नहीं बनना चाहता ? इस जमाने में, भला कोई किसी को नाराज क्यों करेगा ? सबको वोट चाहिए ? कब मौका मिल जाए । बस इसी फिराक में रहते हैं। कोरोना वायरस की इस त्रासदी के दौरान कोई बोले या ना बोले। इस संदर्भ में कोई कुछ कहें। परंतु मैं बोलूंगा तो फिर कहोगे कि बोलता है ! गरीब की बहू को तो हर कोई भाभी कह दे। भले ही वह 60 साल की क्यों ना हो ? वरना ब्राह्मण की नवविवाहिता पुत्रवधू को दादी कह कर पुकारते हैं। मेरा यहां उक्त कथन के जरिए जाति विशेष का विरोध नहीं करना है। बात सामाजिक सुरक्षा की है। मरीज को एक केला देने के पीछे खड़े 10 लोगों की तस्वीर देखिए। एक आटे की थैली देने वाले दर्जनों लोगों की भीड़ देखिए ? मानो उस आटे की थैली को उठाने के लिए कितना परिश्रम करना पड़ रहा होगा? ऐसा प्रतीत होता है। जैसे गांव के सारे लोग मिलकर तलबंदी छांद उठा रहे हो। इन तस्वीरों में छूटभैया नेता केवल उन गरीबों के साथ ही तस्वीरें खिंचावाते नजर आते हैं। जिनकी सामाजिक सुरक्षा नहीं है। वरना तो मुझे एक भी तस्वीर भेज कर बताइए, जो छोटे मंदिरों में, देवालयों में, पूजा पाठ करने वाले गरीब ब्राह्मण को भेंट करने की तस्वीरें वायरल क्यों नहीं ? क्योंकि उनके पीछे सामाजिक सुरक्षा है। फर्क यह है कि उनको देने वाला भी उस गरीब ब्राह्मण को देकर उसके चरणों में माथा टेकता है। यह उसकी सामाजिक सुरक्षा। इधर दलित गरीब को बचा कुचा एवं रुखा सुखा देकर भी उस पर एहसान जताया जाता है। बदले में बेगार करवाई जाती है। गरीब तो ब्राह्मण, बनिए भी हो सकता है ? गरीब राजपूत भी हो सकता है ? गरीब अन्य पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति या जनजाति और घूमंतू समुदाय से भी हो सकते है ? गरीब कोई भी हो सकता है ! मतलब गरीब की कोई जाति नहीं होती है ? भामाशाह गरीबों की मदद कर रहे हैं। अच्छी बात है। होनी भी चाहिए । उनका स्वागत भी करना चाहिए । भामाशाहों को प्रेरित भी करना चाहिए। उनके किए हुए सहयोग और योगदान का जिक्र भी होना चाहिए। उनके किए कार्य पर फिक्र भी होना चाहिए। जो खर्चा कर रहा है, उसकी चर्चा भी होनी चाहिए। चर्चा कर भी रहे हैं, और करेंगे भी। क्योंकि हर कोई आदमी को यस चाहिए। यदि मदद के बाद उसे जस न मिले तो भला वह मदद क्यों करेगा ? ये तमाम बातें हैं। देने वाला दे देता है। दिल खोल कर देता है। यहां तक विश्वास पर बनिए को फोन पर ऑर्डर लिखा देता है। वह राशन में क्या देता है। वह उसका राम जाने। दुकानदार नमक टाटा का देता है या फिर ❌❌ --- मसाले में क्या देता है। हे ! भगवान मुझसे तो ऐसे शब्द मत लिखा। नमक चोरी करके खाने वाले की समाज में कोई कदर नहीं होती। यहां तक नमक में हेराफेरी करने वाले नमक हरामी की कोई कदर नहीं होती। पहले तो गांव में दिन छिपने के बाद कोई नमक खरीद के ही नहीं लाता था। नमक के दाम की कोई उधार नहीं करता था, और दुकानदार तो उस जमाने में नमक तेल की बड़ी कदर करता था। भले ही ओर कहीं दांडी मार लेता था। परंतु नमक तेल में हेराफेरी नहीं करता था। यह हमने सुना है। लेकिन आज के उस नमक हरामी दुकानदार का मैं नाम नहीं लूंगा। जो गरीबों के नाम पर भेजें जाने वाले राशन सामग्री के किट में डुप्लीकेट टाटा नमक डालकर भाव खींचकर ले रहा है। थूं थूं ऐसी कमाई के? परंतु दोष दें तो दे किसे ? जब पूरे कुएं में लाय लगी हुई है, बुझाने वाले भांग पिए पड़े हैं। तो उम्मीद किस पर करें। बेचारा देने वाला गाड़ी भर के प्रशासन को सुपुर्द कर देता है ? कहते हैं ना कि दान के कोई दांत नहीं होते। इसलिए लेने वाला तो बिल्कुल कोई टीका टिप्पणी नहीं कर सकता, और करेगा भी क्यों? क्योंकि वरना तो लोग कह देंगे कि ओए! मांगती और भीट्यों खावै कोन्या ? कुछ भी कहो यार आजकल गरीबी के नाम पर एक राशन की थैली तीन से चार जगह तुलकर सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज हो रही है। क्योंकि भैंस को काकड़ा और सरकार को आंकड़ा जरूर चाहिए। और तो और गरीबी बेचारी बेवजह ही बदनाम हो रही है। आज बस इतना ही बाकी कल---?