कसर नहीं है  स्याणै में


भीम प्रज्ञा संपादकीय@एडवोकेट हरेश पंवार


देशभक्ति के जज्बे को सलाम। आजकल देश में जिस तरह की बयार चल रही है। उसके विपरीत दिशा में चलना खतरे से खाली नहीं है। इसलिए लेखक छुप छुपकर काव्य संग्रह संकलित कर रहे हैं। यदि सोशल मीडिया पर किसी ने जरा सी हिमाकत करते हुए तार्किक तथ्य वाली पोस्ट चिपकाई  तो अंधभक्त ऐसे टूट पड़ते हैं। मानो मृत जीव पर चील कांवला। इसलिए आपसे सलाह है कि चुप रहना ही सार्थकता है। मैं बोलूंगा तो फिर कहोगे कि बोलता है। मैंने तो दीप जलाए हैं। गीत बनाए हैं। मुखिया जी ने जैसे जैसे कहा है। वैसे वैसे किया है। लोक डाउन का उल्लंघन बिल्कुल नहीं किया है? जहां भी गया हूं। आपकी ही बात की है। बुरा मत मानना। कुछ अंधभक्त भूखे थे उनकी ज्यादा कही है। क्योंकि पुरे देश में मुखिया के आह्वान  पर दीप ज्योत्सना के समय 9 बजे 9 मिनट के जबरदस्त उत्साह को देखकर तो मुझसे रुका नहीं गया। इसलिए बगड़ के जनकवि भागीरथ सिंह 'भाग्य' की कविता याद आ गई। 'भाग्य'ने अपने काव्य संग्रह "गीता पैल्या घुंघरी" पुस्तक में खूब अच्छा व्यंग्य लिखा है "खोयो ऊंट घडै में ढूंढै, कसर नहीं है स्याणै में। डाकण बेटा दे या ले, आ भी बात बताणी कै। तेल बडा सू पैल्या पिज्जा, वा की कथा सुनाणी कै।"
 5 अप्रैल की रात भक्तों ने कोई कमी नहीं छोड़ी। दीपक में तेल चमचों से ही डालना था। और भक्त पराती ,पीपे ,थाली पीट-पीटकर  तेल डालते नजर आए। बात एक दीपक जलाने की थी, और भक्तों ने दीपावली ही मनाली। बाजार बंद था पुलिस की कठिन निगरानी में राशन की दुकान के अलावा कोई दुकान नहीं खुली। फिर भी पता न पटाखे और मोमबत्ती कहां से ले आए। मतलब तैयारी तो पूरी ही थी। 22 मार्च  को जनता कर्फ्यू के रूप में पूरे दिन प्रसव पीड़ा। रात को 8 बजे अवतरण।  जश्न में थाली ताली शंख बजवाएं । नेगचार में चहेतों से रुपए मंगवाए। बड़े-बड़े सपने , ड्रीम प्लान, और गरीबों के लिए योजनाओं के सब्जबाग दिखाए। पक्ष विपक्ष सब को राजी कर लाए। 24 मार्च को 21 दिन का लोक डाउन यानि जलवा निकलवा लाए। 30 मार्च को नहाण। 5 अप्रैल को छठी पूजन, भक्तों को गुप्त निर्देश। छत पर दीप जलाएं। भक्तों ने घर का उजाला बंद किया , अंधभक्तों ने दिमाग की बत्ती बंद की।, बस अब दिमाग चलाने की जरूरत नहीं। बस हमें जैसे जैसे मुखिया कहे वैसे वैसे करे। वरना इंतेहा भुगतना पड़ सकता है। चल देश के साथ अब घर की रोशनी बंद कर। हाथ में दीपक ले 5 अप्रैल की रात 9 बजे 9 मिनट तक  करोना मुक्तक बाबा लेख लिखेंगे। देखा तो शहर जगमगा उठे। गांव में सन्नाटा। बस कोई इक्का-दुक्का ने मोमबत्ती लेकर दीप जलाए। बाकी गरीबों ने फिर माहौल बिगाड़ा। मुखिया ने दीपक जलाने को कहा था। नौसिखिया भक्तों ने फिर ताली बजाई। अंध भक्तों ने थाली बजाई। कूट-कूट कर बजाई। मुखिया ने तो घर पर उपलब्धता के आधार पर दीये, मोमबत्ती जलाने को कहा था। लेकिन अंधभक्तों ने पटाखे छोड़कर दुनिया में कोरोना से मरने वाले परिवारों के जले पर नमक छिड़क दिया.. आगामी घोषणा में आज रात 12 बजे। 14 अप्रैल की मध्य रात्री जलवा पूजन पर क्या होगा ?- मैं तो अपनेघर में रहुंगा। तुम भी रहना पब्लिक डिस्टेंस के साथ।-- अंधभक्त गांव के रास्तों पर हाथ में लट लिए खड़े  हैं--