कोरोना के कहर में कोई खाए माल, कोई  चाटे धूल।

संपादकीय- एडवोकेट हरेश पंवार



एक स्कूल में बहुत कीमती एवं सुंदर 'तख्त' रखा था। उस पर हेडमास्टर जी का मन चल गया। उसने स्टॉक रजिस्टर देखा और अपनी कलम की चतुराई से तख्त के आगे 'आ' की मात्रा  जोड़ते हुए उसे 'तख्ता' बना दिया। स्कूल से तख्त गायब कर एक लकड़ी का तख्ता लाकर रख दिया गया। कुछ समय बाद उन हेड मास्टर जी की जगह दूसरा हेड मास्टर जी आया। उसने स्टॉक रजिस्टर देखा। उनके स्कूल में उस तख्ता ज्यादा कीमती चीज उसे नजर नहीं आई। उसने भी अपने मास्टरमाइंड विवेक से  स्टॉक रजिस्टर में नजर गड़ाए और तख्ता पर अपनी कलम की चतुराई दिखाते हुए 'आ' की मात्रा को महज ऊपर से राउंड घुमाते हुए 'ई' मात्रा में तब्दील कर दिया। अब तख्ता 'तख्ती' में तब्दील हो गया और स्कूल से तख्ता भी गायब हो गया। स्कूल के स्टॉक रजिस्टर में महज तख्ती दर्ज और स्टॉक रूम में भौतिक रूप से 20 हजार रुपए के तख्त की जगह ₹ 20 की तख्ती ही मौजूद है। भले आदमियों ! कलम, कागज और सिग्नेचर पावर की ताकत को समझे या नहीं ? मैं बोलूंगा तो फिर कहोगे कि बोलता है। हां !बस बस ऐसा ही कोरोना के कहर में कागज, कलम सिग्नेचर के कसाई यानि प्रशासनिक अधिकारी माल खाकर मालूमाल हो रहे हैं। हॉस्पिटल में संक्रमित पेशेंट के पास खड़ा कंपाउंड, , भागदौड़ करता रेजिडेंट डॉक्टर,  झाड़ू लगाता स्वच्छताकर्मी, व सड़क पर खड़ा पुलिसकर्मी तो महज जनता की फफ्तियां सुनने और धूल फाकने के अलावा इनके पास कुछ नहीं। माल तो बड़े स्तर पर मालजादे डकार रहे हैं।लाॅकडाउन में महंगा गुटखा, जर्दा प्रशासनिक अधिकारी की मिलीभगत से मिल सकता है क्या? अब मेरा मुंह क्यों खुलवा रहे हो ? जब सारा सिस्टम वन वे है। जनता घर में है। कोई बोला, तो देख लेना, समझे---?  बस मन की बात सुनकर मन मन में हीं रो लेना या मुस्कुरा लेना। भूख लगे तो गेहूं की घुघरी खा लेना। दाल मांगी तो तुम्हारी खैर नहीं। समझे? अपने आप को क्या समझते हो? अब देश संकट में है। कोरोना का कहर है। बाहर निकले तो वायरस का जहर है। घर में बैठे रहो। गहरी नींद में सोते रहो। बॉडी स्टैमिना बढ़ाते रहो। चिंता मत करो। देश आगे बढ़ रहा है। चिंतन बाद में कर लेना।
       आज इतना ही बाकी कल।