भीम प्रज्ञा संपादकीय@एडवोकेट हरेश पंवार।
नौकरी में आने के बाद गरीबी का दर्द क्या है? शायद भूल गए होंगे? क्योंकि फुर्सत ही नहीं। जॉब का वर्कलोड और शहर की भागमभाग जिंदगी में महज टिफिन लाइफ की वजह से आप लोढ़ी सिलावटा पर पीसने वाली लहसुन मिर्च की चटनी का स्वाद तो जरूर ही भूल गए होंगे। फुर्सत है तो सुनो! गांव में आपका भाई लोडी सिलावटे वाली चटनी खाने के लिए याद कर रहा है। जो तुम्हें बहुत पसंद है। कम से कम शौक से ही खा लेते। आजकल वे तो रोज ही खा रहे हैं।
कैसा है गांव का गुवाड? जहां आप गिल्ली डंडा खेला करते। लोक डाउन के चलते अब तो फुर्सत में ही हो जरा अभी फोन कर पूछ लेते। क्योंकि नौकरी लगने के बाद और शादी होते ही बूढ़े मां बाप को भी उनके भरोसे छोड़कर शहर जो आ गए थे। अरे हां! मुझे पता है। बचत वचत तो आपके पास है नहीं। आधी सी तनख्वाह फ्लैट की ईएमआई में कट जाती होगी? वैसे इस बार कोरोना वायरस के कारण तनख्वाह में भी कटौती होकर मिली है। क्या करें चाह कर भी अपनों की मदद नहीं कर पा रहे होंगे। बड़े साहब हो। बॉस ने कह दिया तो कुछ चंदा इक_ा कर वाहवाही लूटने के लिए प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री राहत कोष में भी जमा करा दिया होगा? कोई बात नहीं भले काम होते ही रहने चाहिए! प्रमोशन हो जाता तो कुछ तनख्वाह बढ़ जाती। कई दिन हो गए सवामणी करे हुए। परंतु इस बार तो उससे भी खलल पड़ गई। क्या करें घर का काम ही नहीं चलता? नौकरानी के भी तेवर बढ़ गए। वह भी इस बार एडवांस मांग रही है। ये! वो! आदि झंझट रहते हैं। अरे भले आदमियों! आपको पूरे दिन निठल्ले पड़े पड़े बुराई ही सूझती रहती है। कुछ भलाई का भी काम कर लिया करो। फिर कहोगे कि गांव में जाकर क्या करें। हमारी बीवी की कोई इज्जत नहीं करता? मुझे तो कोई पूछता ही नहीं? मुझे तो कोई साहब कहकर नहीं बोलता। यहां तो सब लोक सलूट करते हैं। मेरी कितनी पहचान है। लोगों में देखो! कितनी इज्जत है। मेरी बीवी भी कह रही थी कि गांव में तो लोग ईष्र्या करते हैं। हमारी तरक्की को देख कर लोग जलते हैं।
यदि मैं बोलूंगा तो फिर कहोगे कि बोलता है। अरे भले माणसो कुछ तो सोचो! गांव के गुवाड़ में आपका बचपन का दोस्त! आपके भाई के बच्चे कोरोना त्रासदी से त्रस्त हैं। बीमारी के निजात के लिए तो कोई साधन नहीं। इस महामारी के संक्रमण से तो वैसे ही छुआछूत हो रही है और गांव के लोगों को शहर में अब बीमार के साथ आने वाले अटेंडेंट को घर में कौन घुसने देगा। सोच! उनके बच्चों के बारे में। उनके स्कूल फीस के बारे में। और कुछ नहीं तो उनके साथ रह रहे बूढ़े मां बाप की दवाई के बारे में। क्या तुम्हें चिंता है? गांव में फुटकर मजदूरी करने वाले आपके भाई ने सब्जी बपराया तो 10 दिन से अधिक हो गया होगा? आप यह कहेंगे कि यह समस्या तो पूरे देश में है, कोई बात नहीं। कभी-कभार कुछ उनके बारे में सोचा लिया करो। क्या फटी कमीज वाला वह आपका स्वाभिमानी भाई भूखा मर लेगा पर जौ का दलिया नहीं खाएगा? यह तो आप ही जानते हो। सोच क्या रहे हो। वह हाथ नहीं फैलाएगा। इस विपदा में वह आपको भी नहीं कहेगा? क्योंकि वो जानता है आपके बीवी का स्वभाव को? बात-बात में तुनक मिजाज और मुंह तोड़ जवाब के डर के मारे कह नहीं पाएगा। वह आपसे बिल्कुल नहीं कहेगा। मैं आपसे कह रहा हूं। आप कहेंगे कि यह तो हमारे घर का मामला है। खेत में होता है वह सारा फूंस- फल्डा वो ही रखता है। हम तो खाने का अनाज अनाज ही लाते हैं। लेकिन एक बात और जरूर कर देता हूं। करना है या नहीं करना। यह सब आपके हाथ है। राष्ट्रीय आपदा में और कोरोना वायरस की इस त्रासदी में आपके भाई के बच्चों, आपके रिश्तेदारों की व्यथा को आपसे बेहतर और कोई नहीं जानता। आपके मित्र के दर्द को आपसे ज्यादा कोई एहसास नहीं कर सकता। आपके पास नकद है। वह व्यथित व चिंतित है। किसान का धन अभी खेत में पड़ा है। हाथ में नकदी के नाम पर पाई धेला तक नहीं आया है। वह उम्मीद करता है कि आपका फोन आए और मर्ज वाली बात आप पूछें। मुझे पता है कि आप इस समय नकद नहीं दे सकते। मोबाइल में पे फोन एप्प है ना। पेटीएम है ना, ऑनलाइन ट्रांसफर कर दो। आपके भाई के बच्चों के अकाउंट में कर दो जो जरूरतमंद है। वरना तो एक हिदायत और देता हूं फिर तुम्हारे प्रमोशन के रिजर्वेशन पर तलवार लटकेगी तो उस दिन सड़कों पर धरना-प्रदर्शन देने के लिए टास्क कमेटियां बनाओगे।
आपको संगठन का पदाधिकारी बनाए जाने पर मिलने वाली जिम्मेवारी पर शहर में, कस्बे में, गाडिय़ां भरकर लाने का टारगेट मिलेगा तो कोई नहीं बैठ कर आएगा। कान खोल कर सुन लो आपके किए गए उपकार की आवाज चारों ओर से आनी चाहिए। भीम प्रज्ञा अलर्ट के जरिए एक बात और स्पष्ट कर दूं। जिस दिन सामाजिक संगठनों के ठेकेदार बनकर प्रतिभा सम्मान समारोह के नाम पर कागज के टुकड़ों और झुंझुनियां बांटने के लिए जिला मुख्यालय आओगे। उस दिन बहुत बड़ा जलील करूंगा? फिर कहोगे कि साहब हम तो जिले के बहुत बड़े ओहदे के अधिकारी थे। हमें तो याद ही नहीं किया। अब याद कर रहे हैं। आपको झुंझुनंू जिले का एकमात्र दलित मुद्दों पर पीडि़त मजदूर वंचित हाशिए के लोगों की आवाज बुलंद करने के लिए कोविड-19 भीम प्रज्ञा मीडिया हेल्पलाइन के जरिए हर रोज विषम परिस्थितियों में नए मुद्दों के साथ नियमित प्रकाशन कर रहा है। आप में कुछ करने की जिज्ञासा जागृत कर हुई हैं तो जरूर आपका स्वागत है। फिर सिसकियां लेते फिरोगे कि साहब हमारा मीडिया नहीं है, हमारा कोई सुनने वाला नहीं। फ्रंट मीडिया कवरेज नहीं देता। मुझे विश्वास है आप मदद वाले हाथ आगे बढ़ाएंगे स्क्रीनशॉट हम तक भी साझा करेंगे।