भयभीत अभी तक मंदिर-मस्जिद - आबाद हुई अब मधुशाला 


 भीम प्रज्ञा@ प्रो. (डॉ.) सरोज व्यास।


लॉकडाउन के तीसरे चरण की घोषणा अपेक्षित थी, लोकतंत्र में अफवाहों और चर्चाओं का बाजार गर्म होना भी स्वाभाविक है, यथा - इस बार प्रधानमंत्री ने खुद घोषणा क्यों नहीं की ? 17 मई 2020 के बाद भी लॉकडाउन बढ़ेगा क्या ? कोरोना संक्रमितों की संख्या बढ़ रही है, ऐसे में किसी भी प्रकार की अतिरिक्त छूट देना उचित होगा क्या ? लॉकडाउन को जारी रखने, छूट देने और हटाने की दृष्टि से राज्य एवं जिला स्तर पर सभी क्षेत्रों को तीन जोन में बांटा गया हैं – लाल, ऑरेंज एवं हरा | जोन के अनुसार नियम-शर्तों के तहत छूट दिये जाने की घोषणा हुई, शराब की दुकानें खुलने से पहले लंबी कतारों को देखकर हरिवंशराय बच्चन जी की मधुशाला का अंतरा याद आ गया ...........  


बजी न मंदिर में घड़ियाली, चढ़ी न प्रतिमा पर माला,


बैठा अपने भवन मुअज्ज़िन देकर मस्जिद में ताला,
लुटे ख़जाने नरपितयों के गिरीं गढ़ों की दीवारें,


रहें मुबारक पीने वाले, खुली रहे यह मधुशाला।


अदृश्य सत्ता के स्वामी, प्रकृति एवं प्राणियों के संचालक जिन्हें तथाकथित धर्मों में अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है, उन्हें अपने अनुयायियों से मिलने की अनुमति अभी नहीं हैं | सरस्वती के विद्या मंदिरों (विद्यालयों/कॉलेजों) को खोलने और शिक्षण-प्रशिक्षण करवाने की इजाज़त भी नहीं मिली हैं, क्योंकि 17 मई तक लॉकडाउन के सरकारी आदेशों का पालन करना है | मान्यता है कि धार्मिक-स्थल आत्म-संयमित, आस्तिक एवं धर्मभीरु भक्तों तथा शिक्षालय आदर्श-चरित्रों, ज्ञानपिपासुओं एवं स्वअनुशासित शिक्षक-शिक्षार्थियों की धर्म एवं कर्म स्थली है | तथाकथित शिक्षित एवं साधन सम्पन्न लोगों के लिए (समरथ को नहीं दोष गुसाईं') शराब, सिगरेट और तंबाकू की किल्लत प्रथम और द्वितीय चरण के लॉकडाउन में भी नहीं थी | अब संभवतया सरकारों द्वारा शराब की दुकानों को सर्वाधिक छूट देने का निर्णय राजकीय कोष भरने तथा निम्नमध्यम वर्गीय जनता और गरीब मजदूर श्रमिकों के हित में लिया गया होगा, शराब खरीदने और पीने की वैधानिक स्वतन्त्रता ! भोजन की व्यवस्था सरकारों एवं समाज-सेवी संस्थाओं, कोरोना से बचाव डॉक्टरों एवं पैरामेडिकल कर्मियों तथा सुरक्षा पुलिस द्वारा प्राप्त हो रही थी, है और अभी रहेंगी |


अनिवार्य सेवाओं में नियुक्त प्रत्येक व्यक्ति ‘कोरोना काल’ में ईंट-पत्थर, लाठी-डंडे, तलवार-गोली और गाली खाकर भी इच्छा-अनिच्छा से कोरोना संक्रमित लोगों की रक्षा, सुरक्षा और चिकित्सा कर रहे हैं, लेकिन नशेड़ियों (नशे के आदि- शराब, सिगरेट, तंबाकू) पर किसी को दया नहीं आयी, भला हो राज्य सरकारों का कि रेवन्यू के लालच में धीमे ज़हर के सेवन के आदी लोगों के लिए मधु-विक्रेताओं को लॉकडाउन से मुक्त कर दिया | 


चिंतित हूँ विचलित भी, यह कैसा निर्णय ? अशिक्षा और अज्ञानता प्राय: मनुष्य को विवेक शून्य कर देती हैं | आज पहले ही दिन शराब की दुकानें खुलने से पूर्व ही कई किलोमीटर की कतारें देखी गयी | यहाँ यह स्पष्टीकरण देने की आवश्यकता नहीं कि लम्बी कतारों में खड़े लोगों में अधिकाश: किस वर्ग और आर्थिक-सामाजिक स्तर के हैं | अधिकतर स्थानों पर सामाजिक दूरी और मास्क पहनने की अनिवार्यता की धज्जियां उड़ती देखी गयी, कई जगहों पर मजबूरी में पुलिस को लाठी चार्ज करना पड़ा | आने वाले दिनों में यदि घरेलू हिंसा, लूटपाट और चोरी की घटनाओं में वृद्धि होती है, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए |


हम लड़ किससे रहे है, स्वयं से अथवा महामारी कोरोना से ? धार्मिक स्थल खुलते तो बहुत से सम्मानीय मध्यम वर्गीय प्रणम्य लोगों के परिवार शर्मिंदगी और भूख से मरने से बच जाते, विद्यालय और कॉलेज खुलते तो राष्ट्रनिर्माता कहे जाने वाले शिक्षक 24 घंटे ऑनलाइन की नौकरी के उपरांत भी वेतन मिलेगा अथवा नहीं इस आशंकित करने वाले भय से मुक्त हो जाते, विद्यार्थी जनजागरूकता अभियान का दायित्व संभालकर सामाजिक दूरी एवं अन्य नियम-क़ानूनों का पालन करवाने में सहयोग कर पाते | भोजनालय और व्यायामशालाओं के खुलने पर भी कई किलोमीटर की लाइनें नहीं लगती | एक ओर जहाँ सृष्टि के रचयिता और राष्ट्र निर्माता गृह कैद में हैं वही दूसरी ओर 40 दिनों की पाबंदी के बाद शराब के लिए होश-हवास खोते बुद्धिहीन घर के बाहर, ऐसे में यदि इनके साथ कोरोना घर में प्रवेश करता है तो भारत की धरा पर हाहाकार मचना और मौत का तांडव होना निश्चित है, इस बार दोषी कौन होगा ?