चलिए, आपको आज से एक दशक पहले ले चलते हैं।


ग्रामीण परिवेश से निकल कर मध्यमवर्गीय परिवार का एक युवा सिर्फ़ अपनी प्रतिभा के बदौलत राजस्थान के सबसे बेहतरीन बी-स्कूल से एमबीए की डिग्री हासिल करता है और फिर निकल पड़ता है नौकरी की तलाश में। तमाम प्रयासों के बाद भी हाथ आती है सिर्फ़ निराशा, यहां तक कि एक कॉल सेंटर की महज 8000 रु/ महीने की नौकरी भी हाथ नहीं आती।
ऐसे में प्रबल संभावना होती है हिम्मत टूट जाने की, उम्मीदों के बिखर जाने की... पर ऐसे में जो उम्मीदों के दीवार को इरादों के सीमेंट से जकड़ कर संघर्ष की इबारत लिखे, वो सफ़लता के पर्वत की सबसे ऊँची चोटी पर अपनी विजय पताका फ़हराता है। श्री ओम कसेरा ने इसी ज़ज़्बे तथा संघर्ष की मिसाल पेश की और तमाम बाधाओं को पीछे छोड़ CSE-2010 में All India Rank - 17  प्राप्त किया...


वर्तमान में कोटा के कलक्टर के रूप में कार्यरत श्री केसरा जी की कहानी पढ़ी जानी चाहिए...  न सिर्फ इसलिए क्योंकि इन्होंने अभी-अभी देश का सबसे स्विफ्ट और सुरक्षित इवैकुएशन का नेतृत्व किया है बल्कि इसलिए भी क्योंकि यह कहानी प्रेरणास्त्रोत बन सकती है, उन हजारों-लाखों युवाओं के लिए जो मुश्किल वक़्त में हिम्मत हारने लगते हैं।


कम पढ़े-लिखे माता-पिता, एक ऐसा माहौल जहां उच्च शिक्षा का मतलब सिर्फ कॉलेज लेवल तक पहुंच जाना हो, अच्छी किताबों, दोस्तों और संसाधनों का घोर आभाव और एक अदद मार्गदर्शक की कमी... ये सब आपको पीछे धकेलने का कार्य करती हैं। हिंदी मीडियम से 12वी पास करने वाले श्री कसेरा ने जयपुर से बी.कॉम किया और फिर यूँ ही बिना किसी खास तैयारी के बेहतरीन कॉलेज में सीट हासिल कर एमबीए भी पूरा किया। एमबीए के बाद जब जॉब की तलाश खाली गई तो इन्होंने एमबीए के दिनों के अपने प्रोफेसर 'डॉ. हर्ष द्विवेदी' की सलाह पर अध्यापन कार्य शुरू कर दिया। अध्यापन के साथ-साथ हीं इन्होंने CA, CS और CWA की डिग्रीयां हासिल की। 


इसी बीच इन्हें कई बैंको से नौकरी के आफर भी प्राप्त होते हैं, एक बार तो वर्ल्ड बैंक में भी सलेक्शन हो जाता है, पर सीए इंस्टिट्यूट के कुछ परेशानियों की वजह से 2 महीने में वर्ल्ड बैंक छोड़ वापस लौटना पड़ता है। फरवरी 2010 में वो ONGC अकादमी, देहरादून जॉइन करते हैं, और इसी बीच CSE-2010 का फॉर्म भरा है, ये बात भी भूल जाते हैं। 
फिर एक दिन ONGC के वार्षिकोत्सव में एक डिबेट कम्पीटिशन के दौरान ये दो प्रशिक्षु IAS  अधिकारियों से मिलते हैं और एक मध्यमवर्गीय परिवार के लगभग हर बच्चे द्वारा बचपन से देखा गया वो आईएएस बनने का सपना पुनः जाग जाता है। एक बार को तो हिम्मत नहीं जुटा पाते पर फिर खुद को संबल देते हुए परीक्षा दे आते हैं... लगता है कि सलेक्शन नहीं होगा, सब खत्म। पर वक्त के साथ पता चलता है कि ये इतिहास का अब तक का सबसे मुश्किल पेपर था... फिर प्री का रिजल्ट, पहली बाधा पार, फिर नौकरी से छुट्टी ले कर मेंस की तैयारी और पहले प्रयास में हीं बिना कोचिंग, बिना डिज़ाइंड स्टडी मैटेरियल, बिना मेन्टरशिप, बिना गाइडेन्स... सिर्फ मेहनत, संघर्ष, प्रतिभा और जज़्बे के बदौलत सिविल सेवा परीक्षा के टॉप-20 में जगह।


सफलता की ये कहानी, संघर्षों के जिस बुनियाद पर टिकी है, वो प्रेरणा देते हैं कभी हिम्मत न हारने की, पहाड़ के आगे और विराट हो जाने की, एक छोटे से कस्बे से निकल कर देश के हर कोने से आये छात्रों के दिल पर छा जाने की, देश के भविष्यों को सुरक्षित कर रियल लाइफ जीतू भैया बन जाने की...


ये कहानी है ओम कसेरा की। उस शख्श की जिसके अधिकार क्षेत्र की जद में तो सिर्फ एक जिला आता है पर दुआएं वो पूरे देश से बटोर रहा है।